Wednesday, 30 June 2021

प्रपंचतंत्र की कथा।। भाग -2

हज़ारों साल पहले सोमालिया के एक जंगल में बदमाश किस्म के पहाड़ी बंदर राज करते थे, वो जानवरो पर गुंडागर्दी करते, जंगल में उगने वाले फल पहले खुद खाते और बच जाता तो बाकी जानवरों को मिल पाते,
सब जानवर उन पहाड़ी बंदरो से बहुत दुखी थे,
लेकिन लकड़बग्घों ने समझाया कि ये पहाड़ी बंदर देव तुल्य हैं हमें इन पर भरोसा करना चाहिये इनका साथ देना चाहिये और बदले में पहाड़ी बंदर हमारे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।।

जब मौसम बदला तो पहाड़ी बंदर वापस पहाड़ पर चले गए और जंगल की सत्ता भूरे बंदरों के झुंड ने संभाल ली।।

लकड़बग्घे जंगल के जानवरों को बताते की भूरे बंदरों ने बड़ी लड़ाईयां लड़ी और कुर्बानी देकर पहाड़ी बंदरों को भगाया है और मासूम जानवर ये बात सच मान गए और भूरे बंदरो की सत्ता निर्विरोध चलने लगी।।

भूरे बंदरो का अघोषित नियम था कि किसी भी पेड़ पर अगर 100 फल लगे हैं तो उसमें से 85 फल भूरे बंदर चुपचाप हड़प लेते और बाकी बचे 15 फल ही जानवरो तक पहुँचते।।

अगर कोई जानवर इस पर सवाल उठता तो लकड़बग्घे उन्हें पहाड़ी बंदरो की गुंडागर्दी की याद दिला देते जिस से भूरे बंदरो ने उन्हें मुक्ति दिलाई थी और उन 15 फलों को जो बाकी जानवरो को मिल रहे थे उसे भी भूरे बंदरो द्वारा किया गया एहसान बताते।।

उसी जंगल मे रहने वाले गोरिल्लों के झुंड को भूरे बंदरो की ये मक्कारी समझ आगयी और उन्होंने बाकी जानवरों को भूरे बंदरो के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया जिसमें उन्हें लकड़बग्घों का भरपूर साथ मिला, गोरिल्लों का लीडर था "हिममानव"।।

हिममानव ने जानवरों से वादा किया कि जंगल का राजा बनने के बाद वो नया नियम बनाएगा जिसमे हर जानवर को 15 फल मिला करेंगे।।

जानवरों ने भूरे बंदरो का तख्ता पलट दिया और जंगल की सत्ता हिममानव के नेतृत्व में गुरिल्लों को सौंप दी।।

हिममानव ने सत्ता संभालते ही फलों के पेड़ लोमड़ियों को बेचने शुरू कर दिए, कुछ जानवरो ने इसका विरोध किया तो  लकड़बग्घे फिर सक्रिय हो गए और समझाया की पेड़ बिके नहीं है वो तो यहीं तुम्हारे ही जंगल मे हैं, पेड़ ज्यादा से ज्यादा फल दे सके इसलिए हिममानव ने लोमड़ियों को ये जिम्मेदारी दी है कि वो इन पेड़ों से अधिक से अधिक फल प्राप्त करें ताकि हम जानवरो को ज्यादा फल प्राप्त हों बस इसी मेहनताने के रूप में हमें इन लोमड़ियां को छोटे मोटे जानवर मारने-खाने की सुविधा देनी है।।

Moral of the story : जंगल को खतरा पहाड़ी बंदर, भूरे बंदर या गोरिल्ले से ज्यादा लकड़बग्घों से है, अपने बीच मे मौजूद इन लकड़बग्घों को पहचानें।।

प्रपंचतंत्र की कहानी।। भाग -1

हज़ारों साल पहले अंटार्टिका में एक जंगल हुआ करता था।
वहाँ रंगे सियारों ने गधों का बहुमत जुटा कर एक सुअर को अपना प्रधानमंत्री बना लिया।

सुअर नाली में लौटता तो सियार उसे शेर बता देते और गधे नाचने लगते,

सुअर कीचड़ में लथपथ होता तो सियार इसको धरतीपुत्र बता देते और गधे कृतज्ञता से भर जाते,

सुअर 💩 खाते हुए पकड़ा जाता तो सियार इसको सुअर का सादा जीवन बता देते और गधे गदगद हो जाते,

सुअर मासूम जानवरों को मारकर खाता और सियार उन जानवरो को दूसरे जंगल से आये भेड़िये घोषित कर देते,

सुअर की हर बेहूदगी पर गधे अक्सर कुत्ते बन जाते और  पूँछ हिला कर सुअर का गुणगान करते और भौंक भौंक कर दूसरे जानवरों की नाक में दम करते।।

उसी जंगल का राष्ट्रपति एक गूँगा सुअर था, फिर सावन आया और गूँगा अचानक बोल पड़ा तब पता चला वो सुअर नहीं उल्लू था।।

Moral of the story : जानने के लिए हमें शुल्क अदा करें ✋😐

Saturday, 15 May 2021

Pseudo Nationalism

HIROO ONEDA
(हीरू ओनेडा)
इस शख्स को 1944 में second world war के वक्त Japnese Imperial Army में बतौर सेकेण्ड लेफ्टिनेंट पोस्टिंग मिली थी।।
उस वक़्त जापान में राजशाही और फासिस्ट किस्म का सिस्टम राज कर रहा था। उस समय जापानियों को देशभक्ति की जबरदस्त घुट्टी पिलाई जाती थी जिसकी वजह से हर जापानी मरने मारने पर उतारू रहता था।।

हीरू ओनेडा और उसकी टुकड़ी को फिलिपिन्स के एक द्वीप पर अमेरिकन हवाई अड्डे पर कब्ज़े का काम सौपा गया था। मिशन पर निकले इस सैन्य टुकड़ी पर अमेरिकन फौजे भारी पड़ी और ये सैन्य टुकड़ी मारी गई। इनमें केवल चार लोग बचे थे। हीरू ओनेडा और उसके तीन अन्य साथी। हीरू और उसके साथी एक पहाड़ी गुफा में छुप गए। मिशन असफल था मगर वह इस हार को बर्दाश्त नही कर पा रहे थे। वो अपने मिशन को आज नही कल सफल करना चाहते थे। परमाणु हमले के बाद जापान समर्पण कर चुका था। हीरू ओनेडा और उसके तीन अन्य साथियों युइची अकत्सू, शिमाडा और कोज़ुका को ये बात पता ही नही थी कि जापान ने सरेंडर कर दिया है।

एक दिन हवाई जहाज़ से पूरे इलाके में पर्चे गिराए गए जिनमे युद्ध में जापानियों के सरेंडर की जानकारी के साथ इस द्वीप पर मौजूद सभी सैनिकों को सरेंडर करने को कहा गया था मगर हीरू ने इसे फर्ज़ी माना क्योंकि वो मानता था कि जापान कभी हार ही नहीं सकता लेकिन उसके एक साथी युइची अकत्सू ने पर्चे की बात को सही माना और इन्हें छोड़ कर सरेंडर करने चला गया।।

 कुछ समय बाद तलहटी में किसानो ने खेती शुरू कर दी। खेती होते देख हीरू और उसके दो अन्य साथियों शिमाडा और कोज़ुका में गहन मंत्रणा हुई। निश्चिंत हुआ कि ये किसान नही बल्कि अमेरिकन जासूस है जो भेष बदलकर उनकी टोह लेने आये है। इसलिए सैनिक नियमो के तहत तय पाया गया कि इन जासूसों (किसानो) को मारना और बर्बाद करना है। इसके बाद हीरू और उसके दो साथी शिमाडा और कोज़ुका उन किसानो को मारते, उन्हें लूटते और खुद के खाने के जितना अनाज लेकर बाकी की पूरी फसल जला देते।

ऐसी ही एक कार्यवाही में उनका एक साथी शिमाडा 1954 में मारा गया। अब बस दो बचे थे। एक हीरू और कोज़ुका। ये कार्यवाही उन दोनों ने जारी रखी और लगातार चलती रही। इस दौरान उन्होंने कई किसानो को अमेरिकन जासूस समझ कर मार डाला। इन्हीं हमलों में एक दिन तीसरा साथी कोज़ुका भी मारा गया। अब बचा केवल अकेला हीरू ओनेडा जो पहाड़ी के आसपास दिखने वाले किसी भी व्यक्ति को मार डालता।

हीरू को एक दिन एक जापानी पर्यटक युवक नोरिओ सुजुकी मिल गया जो वहाँ घूमने आया था। हीरू ने नोरिओ सुजुकी को बंधक बना लिया। नोरिओ सुजुकी ने हीरू को बताया कि युद्ध तो कई साल पहले ख़त्म हो चुका। उसने पूरी घटना बताई की कैसे एटम बम गिरे। कैसे दो शहर तबाह हुवे और कैसे जापान ने हार मान कर सरेंडर किया।

मगर नोरिओ सुजुकी की बातो पर भी हीरू को यकीन नहीं हुआ। जापानी होने के नाते उसने नोरिओ सुजुकी को छोड़ तो दिया, मगर ये मानने को तैयार नहीं हुआ कि जापान सरेंडर कर सकता है। यहाँ से हीरू को मेन स्ट्रीमलाइन में लाने का श्रेय बंधक बनाये गए नोरिओ सुजुकी को जाता है। वह जापान वापस जाकर हीरू के कमांडिग अफसर  तानिगुची की तलाश करके उनको पूरी बाते बताई। इसके बाद उस कमांडिंग अफसर तानिगुची को फिलीपींस भेजा जाता है। हीरू के पहाड़ पर कमांडिंग अफसर तानिगुची अकेले गया। उसे शाबासी दी और कहाकि युद्ध खत्म हो गया है। सरेंडर कर दो।

सन 1974 शुरू हो चूका था। 30 साल हीरू वह जंग लड़ चूका था जो तीन दशक पहले ही खत्म हो चुकी थी। इसके बाद हीरू के सरेंडर की कार्यवाही शुरू होती है। फटी हुई वर्दी पहने हीरू ने, अपनी गन,  कारतूस और समुराई तलवार, हैण्ड ग्रेनेड के साथ एक कटार को फिलीपींस के राष्ट्रपति के समक्ष समर्पण किया। उस पर 30 से ज्यादा हत्या के केस थे। मगर सरेंडर पालिसी के तहर उसको पार्डन (माफी) मिलना था और मिला भी। माफ़ी मिल जाने के बाद हीरू अपने देश 1984 लौटा। मगर हीरू ओनाडा को अपना खुद का देश ही पहचान में नही आ रहा था। उसके साथी उसको पहचान नही पा रहे थे। वो उस कल्पना में जी रहा था जो 30 साल से अधिक समय यानी 1944 में फ्रीज थी। उसकी चेतना अब चार दशक बाद बाहर आने में असहज महसूस कर रही थी।

आपको हीरू ओनाडा और उसके साथियों का किस्सा काफी अजीब लग रहा होगा। एक जीवन ख्याली युद्ध मे बर्बाद हो चूका था। इसके अलावा बेकसूरों की जो 30 से अधिक हत्या उसने की, उसे भी जोड़िये।

हिंदुस्तान में अपने आसपास और सोशल मीडिया पर देखे। हज़ारों-लाखो हीरू ओनाडा मिलेगे जो अपने समय काल से पीछे एक खयाली युद्ध लड़ रहे है।
उनको गौर से देखे उनकी उम्र 20-30-50 साल है, मगर कोई 80 साल पहले जिन्ना से, कोई 400 साल पीछे औरंगजेब से, तो कोई 600 साल पीछे बाबर से, कोई 1000 साल पीछे गजनवी से, कोई 1400 साल पीछे कासिम से लोहा ले रहा है। खंदक खोद रहा है, हमले कर रहा है।

दिमाग मे एक अजीब खयाली युद्ध चल रहा है। किसी को महात्मा गाँधी से जवाब चाहिए तो किसी को नेहरू से जवाब चाहिये। कुछ तो बाबर को ताल पीट कर ललकार रहे है। क्रांति लाना चाहते है। भीड़ में तब्दील होकर एक ऐसा युद्ध लड़ रहे है जिसमे युद्ध तो ओनाडा जैसा खयाली है मगर मौतें असली है, जिंदगियों की बर्बादिया असली है, देश का गर्त में जाना असली है।

धर्म, जाति और इतिहास से एक प्रकार के कम्प्लेक्स, और नफरत का शिकार होकर आम हिंदुस्तानी, हीरू बने फिर रहे हैं। शायद जब हीरू के तरह सरेंडर करेगे तो आँखे खुलेगी। कोई सुजुकी आकर हमारी आँखे खोलेगा तो हमको अपना ही देश पहचान में नहीं आएगा।

Crisis of Identity

इफियालिट्स !! ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ है बुरा सपना ….

यूनानी मिथकीय कथाओं में एफियालिट्स नाम के चरित्र का उल्लेख मिलता है!
(300 नामक फ़िल्म जिन्होंने देखी है वो जानते होंगे)

यूनान का राजा लियोनैइड्स बहुत बहादुरी से लड़ने के बाद भी पर्शियन राजा जर्क्सीज से हार जाता है, क्यूंकि एफियालिट्स पर्शियन राजा से जा मिलता है।।

सवाल है की एफियालिट्स पर्शिया के राजा जिसने खुद को देवता घोषित कर रखा था की बंदगी क्यूँ कबूल करता है?

एफियालिट्स एक कुबड़ा और जन्मजात अपरिपक्व शारीरिक कमजोरी वाला व्यक्ति होता है, जिसे अपने समाज में हमेशा तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।।

उसे खुद को राष्ट्रवादी सिद्ध करना होता है ताकि पहचाना जा सके समाज में, ये मौका यूनानी साम्राज्य में उसे नहीं मिलता।
तो वो पर्शियन राजा (स्वघोषित देवता) की बंदगी कबूल करके अपनी पहचान बनाने की चेष्टा करता है। 

अपनी मौत से ऐन पहले वो ये स्वीकार करता है की पर्शिया में उसे धन और औरत का सुख मिला और सबसे ज्यादा जरुरी चीज़ जो मिली वो थी 'पहचान' जो यूनान में उसे कभी नहीं मिली। 

मैंने काफी अध्ययन किया और देखा की देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भी एफियालिट्स की तरह ही हैं।
ये लोग अपने निजी जीवन में उपेक्षित थे, कुंठित थे क्योंकि ये जो होना चाहते थे वो हो नहीं सके कुछ अपनी अक्षमताओं के कारण और कुछ अवसर ना मिलने के कारण, ये लोग भी एक प्रकार से पहचान के संकट से भरा जीवन जी रहे थे जिसे अंग्रेजी में "Crisis of Identity" बोलते हैं।

इनकी इसी कमजोरी को पकड़ कर एक शातिर गिरोह ने 'राष्ट्रवादी' और 'सच्चे हिन्दू' टाइप के Title/ Certificate देने का काम शुरू किया जैसे अंग्रेज़ी हुकूमत 'खान बहादुर' 'राय बहादुर' की पदवी दिया करती थी अपने चाटुकारों को।।

Crisis of Identity से गुज़र रहे लोगो के लिए ये किसी संजीवनी से कम नहीं था उन्होंने इसे हाथो-हाथ लिया और ऐसे खड़ी हो गयी देश में स्वघोषित देशभक्त हिंदुओ की फौज।।

राष्ट्रवादी / सच्चा हिन्दू होने के टाइटल को संभालने के लिए मन की बात करने वालो से लेकर तड़ीपार गुंडे, योगी और साध्वी के छद्मभेषधारी लोग, दिनरात नफ़रत के बीज बोने वाले नौटंकी करने वाले पत्रकारों, फिल्मी लोग यहाँ तक कि देश के समस्त संसाधनों को लूटने पर उतारू चुनिंदा व्यापारिक घरानों तक कि तरफदारी करना आवश्यक बना दिया गया और इन बेचारों ने दिलो जान से ये काम किया और कर रहे हैं।।

राष्ट्रवाद की परिभाषा में इनकी सोच सिकुड़ कर जर्क्सिस जैसे स्वयंभू देवताओं की ग़ुलामी तक सिमट कर रह गयी,

Secularism / Liberalism / Communism जैसी अवधारणाओं को गालियाँ दी जाने लगी क्योंकि इनमें धर्म की दीवारें ढह जाती हैं इसलिए हिंदुत्व (हिन्दू धर्म नहीं) की बेहद संकीर्ण परिभाषा तले अपनी पहचान बनाने की कोशिश जारी है।।

इन सब के मूल में है 'एफियालिट्स' यानी… बुरे स्वप्न सरीखी...कुंठा, मानसिक विकलंगता और पिलपिला अहम जिसे जर्क्सिस जैसे शैतान अपने साम्राज्यवाद के सपनों की पूर्ति के लिए पोषण देते हैं।।

Tuesday, 3 December 2019

अब थकने लगा हूँ

मौसम की तब्दीली झिलती नही
हल्की सर्दी तबियत नासाज़ कर जाती है
दवा की गोलियां खाने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ

शबभर की महफ़िलें रास नही आती
घर का बिस्तर ही सुहाता है
मयकशी से किनारा करने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ


साया भी एक ज़माने से ख़फा है
वस्ल की ख्वाहिश नहीं होती
आवारा मोहब्बत को भुलाने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ


कौम के हर मसले से थी वाबस्तगी
गिर्द-ओ-पेश पे रहवे थी नज़र
सियासी मुबाहिसों से बचने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ

मौत का दिन तो मुकर्रर है
बस बिस्तर में वफ़ात ना हो
बिखरती सेहत से डरने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ

~आवारा~


Tuesday, 15 January 2019

इश्क़ हक़ीक़ी

21 दिसम्बर 2018 रात क़रीब 11 बजे विसाल अपनी ख़्वाबगाह में अकेला कभी गुनगुनाता है "...तेरे क़दम मैं चूम-चूम कर, करूँ इश्क़ का रुतबा ऊपर..."
कभी पाकीज़ा फ़िल्म का डायलॉग
"आपके पाँव देखे, बेहद हसीन हैं, इन्हें ज़मीन पे मत रखियेगा, मैले हो जाएंगे"
दोहराता और मुस्कुरा रहा है!

दरअसल आज दफ़्तर में कुर्सी लग जाने से ज़ोया के पाँव में हल्की मोच आ गयी और वो दर्द से बिलबिला उठी, विसाल तुरंत हरकत में आया और उसको कुर्सी पर बैठा कर तेजी से फर्स्ट-एड बॉक्स से दर्द-निवारक स्प्रे ले आया। मोच वाली जगह पर स्प्रे करके अपना हाथ पौंछने वाला तौलिया लपेट कर हल्की मसाज करके उसे आराम पहुंचाने की कोशिश की।।

शाम को ज़ोया दफ्तर से तयशुदा वक़्त पर घर को निकली मगर विसाल को ज़रूरी फ़ाइल निपटाने की खातिर रुकना था।

थोड़ी देर बाद जब दफ्तर से सब लोग चले गए तब विसाल की नज़र अपने तौलिये पर पड़ी जिसे ज़ोया ने जाते वक्त निकाल कर रख दिया था। तौलिया अभी भी पैर में लिपटने वाले अंदाज़ में गोल मुड़ा हुआ था, विसाल उसे उठा कर अपने कुर्सी पर बैठ गया और मुस्कराते हुए उसे देखने लगा उसे अभी भी मुड़े हुए तौलिये में ज़ोया के पाँव होने का एहसास हो रहा था।
फिर जाने उसके जी में क्या आया कि तौलिये को सीने से लगा लिया, फिर उसे खोल कर उस हिस्से को बड़ी शिद्दत से चूमा जहाँ ज़ोया का पांव उसमें लपेटा गया था।
हालाँकि तौलिये से अब स्प्रे की गंध आ रही थी मगर विसाल को ज़ोया के जिस्म की मदहोश कर देने वाली महक का ही एहसास हो रहा था।
उम्र का चौथा दशक आधा पार कर लेने के बावजूद यों नौजवान लौंडो सी इस हरक़त पर खुद विसाल को हंसी छूट गयी मगर फिर भी वो इस पागलपन को कई बार दोहरा गया।।

विसाल को इस वक़्त भी अपनी ही सांसो से ज़ोया की महक महसूस हो रही है।
वो आखिर खुद को रोक नही पाया और ज़ोया के मोबाइल पर मैसेज करके उसके पाँव के दर्द का हाल पूछ ही लिया है।
और रह रह कर चेक कर रहा है कि मैसेज पढ़ा गया है या नही, वो ऑनलाइन आये और इसका मैसेज बिना पढ़े ही छोड़ दे, या देख कर भी कोई जवाब ना दे ऐसे ना जाने कितनी ही संभावनाएं विसाल के जेहन में घुमड़ रही है।
ज़ोया की कदमबोसी का मुक़द्दस ख्याल लिए विसाल नीँद के आगोश में समा रहा है।।।

Saturday, 5 August 2017

Man ready for love

A Man Ready For Love...

"Is waiting for a particular woman to enter his life. He is not interested in every woman that crosses his path.
He doesn't have time to waste dealing with women who he can't seriously see himself being with for a long time.
A man ready for love is looking for a woman who can help birth his visions and his dreams.
A man ready for love is looking for a woman of substance who can bring value to his life.
He's looking for a woman who can be his peace and not his headache.
He's looking for a woman who is confident and sure about herself.
He's looking for a woman who he can seriously see himself raising a family with one day.
He's looking for a woman who he can connect with mentally and emotionally on a different level.
He's looking for a woman who carries herself with class and has intelligence.
A man ready for love is waiting for a woman who is worth pursuing and being in love with."