Sunday, 29 June 2008

ऐसा भी होता है.........

उस दिन कॉलेज का सालाना कार्यक्रम था,
चूंकि कार्यक्रम सामाजिक और सांस्कृतिक प्रस्तुतीकरण का था अतेः
रुचिवश उसमे भाग लिया ,
संयोजक ने एक बेहद महत्वपूर्ण कार्य सोंप दिया, जिसे बेक्स्टेज मैनेजमेंट कहते हैं.
तीन वोलेन्टीर फ्रेशेर लड़कियां बतौर सहायक साथ नियुक्त कर दी गई, ( सोनिया, निशा, तथा शिल्पा *)
इनमे से किसी को भी कार्य के विषय में ज़्यादा कुछ नही पता था परन्तु तीनो ही काफी मेहनती तथा समर्पित थी।
खासकर सोनिया की बुद्धिमत्ता ने मुझा खासा प्रभावित किया, उसने ना केवल कार्य को शीघ्र समझ लिया वरन मेरे कहने से पहले ही मेरी बात वो समझ जाती थी,
उसके इसी आचरण के चलते काम काफ़ी आसान हो गया था।
आयोजन की समाप्ति पर मैंने सीनियर होने के नाते अपनी तरफ़ से उन्हें कुछ उपहार देना चाहा,
परन्तु उन्हें कुछ संकोच हो रहा था, चूंकि उस समय सोनिया से मुखातिब था अतः उसी से मैंने कहा के
"एक बहन को भाई से उपहार लेने में संकोच नही होना चाहिए " इस पर उसने उपहार स्वीकार कर लिया मैंने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा "खुश रहो"।
बाद में चाय - नाश्ते के समय मै अपने मित्र के साथ खड़ा काफी पी रहा था तभी मैंने पाया की वो तीनो युवतिया कभी कुछ खुसर - पुसर कर रही थी कभी हंस रही थी और बीच बीच में मेरी तरफ़ भी देखती जाती थी।
मुझे कुछ असहज महसूस हुआ।
कुछ देर बाद इत्तेफाकन पानी के काउंटर पर शिल्पा से सामना हो गया,
वो मेरी तरफ़ देख कर अजीब ढंग से मुस्कुराई, उसकी रहस्यमई मुस्कान ने मुझे मजबूर कर दिया और मैंने पूछ लिया के बात क्या है,
उसने पहले तो ना - नुकर करके बात घुमाने का प्रयास किया मगर उसके चेहरे और आवाज़ से साफ़ पता चलता था के कुछ और मामला है।
मेरे ज़ोर देने पर उसने जो बताया उसे सुनकर मेरा क्या हाल हुआ ये सिर्फ़ मै ही जानता हूँ ,

उसने बताया के सोनिया कॉलेज के पहले दिन से ही मुझ से बेहद प्रभावित थी और फ्रेंडशिप करने की इच्छा रखती थी.
पहले तो मैंने इसे मजाक समझा और उसकी बात को खारिज कर दिया मगर जब उसने अपने बैग से एक पर्ची निकाल कर दिखाई तो मुझे यकीन करना पड़ा,
उस पर्ची पर वास्तव में सोनिया का नाम और मोबाइल नम्बर लिखा था,
शिल्पा ने आगे बताया के सोनिया तो मना कर रही थी मगर निशा के ज़ोर देने पर उसने इस बात पे अपनी सहमति दे दी थी के यहाँ से जाते समय उसके मोबाइल नम्बर लिखी स्लिप शिल्पा के हाथ मुझ तक पहुँचा दी जायेगी.
मगर उससे पहले ही मैंने उसे बहन बोल कर सारा मामला चोपट कर दिया।
इतना कुछ जान कर मुझे कुछ हो गया ,
मै बैचैन हो उठा और इस बार जब मेरी नज़र सोनिया पर पड़ी तो मैंने महसूस किया के मेरी नजरो में कुछ फर्क आगया है,
मुझे उसमे एक लड़की नज़र आ रही थी, जिसे पहले मैंने नज़रंदाज़ कर रखा था,
एक खूबसूरत लड़की,
जिसके मैं करीब आना चाहता हूँ ,
जिसे छूना चाहता हूँ,
मेरे दिमाग में अजीब सी कशमोकश पैदा हो गई।
मै वहां से निकल कर बहार चला आया और जेब से एक सिगरेट निकाल कर जलाई
धीरे धीरे धुएँ के साथ सारी कशमोकश भी हवा में उड़ गई...........



*नाम तथा परिस्थितियां बदल दी गई है।

No comments: