Monday, 28 July 2008

शान्ति और सुकून.

आज कुछ दोस्तों के साथ मंडी हाउस की तरफ़ जाना हुआ,यह इलाका नई दिल्ली में है।
वहा हमने लंच किया और विट्ठल भाई पटेल हाउस चले आए, यहाँ प्रीतम और सिद्धार्थ से मुलाक़ात की गई,
आज सिद्धार्थ का जन्मदिन भी था और हम पार्टी के मकसद से भी मिले थे,
फ़िर काफ़ी देर तक हम वहा रहे। वही कुछ देर में भारत के उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी के आने का कार्यक्रम था और उनकी सुरक्षा का अमला आ धमका भीड़ भाड़ की आशंका के चलते हम वहा से पलायन करके एक बार फ़िर मंडी हाउस की तरफ़ चले आए।
यहाँ हमने चाय नाश्ता वगेहरा किया और एक व्यक्ति से कुछ काम के सिलसिले में बात चीत की।
उसके बाद हम वहा काफ़ी देर तक बैठ कर बातें करते रहे।
आज हलकी बरसात होने के बाद मौसम खासा सुहावना था। वहा वैसे भी हरयाली है ऊपर से खुशगवार मौसम से वहा काफ़ी अच्छा लग रहा था,
यहाँ का माहोल भी खासा मुझे रास आया,
एक तो इस इलाके में वाहनों की आमद कुछ कम है,
और यहाँ मोजूद लोगों के चेहरों पर एक अलग ही मासूमियत देखती है बिल्कुल वैसी जैसी अक्सर गाँव के लोगो के चेहरों पर दिखती है।
हलाँकि कुछ दिल्ली की चिरपरिचित मक्कारी भरे चेहरे भी थे मगर उनकी मोजूदगी यहाँ काफ़ी कम थी।
इसका एक कारन तो ये हो सकता है के यहाँ ज़्यादातर लोग नाटक,थिएटर,संगीत ,कला आदि के शेत्र से जुडे है और कलाकारों में मासूमियत का भाव कुछ ज़्यादा होता है।
यहाँ मुझे बेहद अच्छा लग रहा था, यहाँ का माहोल मुझे कुछ इतना भाया है के मै यहाँ अकेले भी आना और वक्त बिताना पसंद करूँगा।
यहाँ की सबसे बड़ी विशेषता है के यहाँ वक्त मानो ठहर गया मालूम होता है,
लोग-बाग़ यहाँ फुर्सत में दिखाई देते है। जैसे किसी को ना तो कही आना है ना जाना है,
हालाँकि यह हकीकत नही है मगर फ़िर भी यहाँ वक्त की रफ़्तार दिल्ली की दूसरे इलाकों के मुकाबले में काफ़ी धीमी है.
शाम को करीब छेह बजे हम वापसी के लिए रवाना हुए, रास्ते में काफ़ी जाम भी मिला मगर जब हमारी कार जैसे ही तालकटोरा रोड को पार करके रिज एरिया में परवेश कर गई एक बार फ़िर शान्ति और सुकून का आलम मेरे सामने था,
हालंकि यह कुछ थोडी देर के लिए ही था क्यूंकि जल्दी ही कार शंकर रोड पर उतर गई और फ़िर से सामना हुआ दिल्ली की चिर परिचित भीड़,शोर,जाम वगेहरा से,
मगर रिज एरिया से गुज़रना मुझे बेहद रास आया,
यहाँ मुझे जो शान्ति,हरयाली,सुकून मिला वो खासा आरामदायक था।
दिल्ली में ऐसे इलाके कम है मगर जितने भी हैं वो खुदा की नेमत से कम नही है।
"दिल कहता है तू है यहाँ तो जाता लम्हा थम जाए ,
वक्त का दरिया बहते-बहते इस मंज़र में जम जाए "


"ये अरमा है शोर नही हो,खामोशी के मेले हो
इस दुनिया में कोई नही हो हम दोनों ही अकेले हो।"

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