आज कुछ दोस्तों के साथ मंडी हाउस की तरफ़ जाना हुआ,यह इलाका नई दिल्ली में है।
वहा हमने लंच किया और विट्ठल भाई पटेल हाउस चले आए, यहाँ प्रीतम और सिद्धार्थ से मुलाक़ात की गई,
आज सिद्धार्थ का जन्मदिन भी था और हम पार्टी के मकसद से भी मिले थे,
फ़िर काफ़ी देर तक हम वहा रहे। वही कुछ देर में भारत के उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी के आने का कार्यक्रम था और उनकी सुरक्षा का अमला आ धमका भीड़ भाड़ की आशंका के चलते हम वहा से पलायन करके एक बार फ़िर मंडी हाउस की तरफ़ चले आए।
यहाँ हमने चाय नाश्ता वगेहरा किया और एक व्यक्ति से कुछ काम के सिलसिले में बात चीत की।
उसके बाद हम वहा काफ़ी देर तक बैठ कर बातें करते रहे।
आज हलकी बरसात होने के बाद मौसम खासा सुहावना था। वहा वैसे भी हरयाली है ऊपर से खुशगवार मौसम से वहा काफ़ी अच्छा लग रहा था,
यहाँ का माहोल भी खासा मुझे रास आया,
एक तो इस इलाके में वाहनों की आमद कुछ कम है,
और यहाँ मोजूद लोगों के चेहरों पर एक अलग ही मासूमियत देखती है बिल्कुल वैसी जैसी अक्सर गाँव के लोगो के चेहरों पर दिखती है।
हलाँकि कुछ दिल्ली की चिरपरिचित मक्कारी भरे चेहरे भी थे मगर उनकी मोजूदगी यहाँ काफ़ी कम थी।
इसका एक कारन तो ये हो सकता है के यहाँ ज़्यादातर लोग नाटक,थिएटर,संगीत ,कला आदि के शेत्र से जुडे है और कलाकारों में मासूमियत का भाव कुछ ज़्यादा होता है।
यहाँ मुझे बेहद अच्छा लग रहा था, यहाँ का माहोल मुझे कुछ इतना भाया है के मै यहाँ अकेले भी आना और वक्त बिताना पसंद करूँगा।
यहाँ की सबसे बड़ी विशेषता है के यहाँ वक्त मानो ठहर गया मालूम होता है,
लोग-बाग़ यहाँ फुर्सत में दिखाई देते है। जैसे किसी को ना तो कही आना है ना जाना है,
हालाँकि यह हकीकत नही है मगर फ़िर भी यहाँ वक्त की रफ़्तार दिल्ली की दूसरे इलाकों के मुकाबले में काफ़ी धीमी है.
शाम को करीब छेह बजे हम वापसी के लिए रवाना हुए, रास्ते में काफ़ी जाम भी मिला मगर जब हमारी कार जैसे ही तालकटोरा रोड को पार करके रिज एरिया में परवेश कर गई एक बार फ़िर शान्ति और सुकून का आलम मेरे सामने था,
हालंकि यह कुछ थोडी देर के लिए ही था क्यूंकि जल्दी ही कार शंकर रोड पर उतर गई और फ़िर से सामना हुआ दिल्ली की चिर परिचित भीड़,शोर,जाम वगेहरा से,
मगर रिज एरिया से गुज़रना मुझे बेहद रास आया,
यहाँ मुझे जो शान्ति,हरयाली,सुकून मिला वो खासा आरामदायक था।
दिल्ली में ऐसे इलाके कम है मगर जितने भी हैं वो खुदा की नेमत से कम नही है।
"दिल कहता है तू है यहाँ तो जाता लम्हा थम जाए ,
वक्त का दरिया बहते-बहते इस मंज़र में जम जाए "
"ये अरमा है शोर नही हो,खामोशी के मेले हो
इस दुनिया में कोई नही हो हम दोनों ही अकेले हो।"
Monday, 28 July 2008
Tuesday, 24 June 2008
वो चौरसिया
अक्सर रात को हम दोस्त उसकी दूकान पर सिगरट पीने जाते थे, उसका नाम तो हमे मालूम नही मगर उसकी दूकान को हम शोरूम कहते थे।
वो करीब पच्चीस साल का लड़का था जो बिहार से दिल्ली आया था और पिछले चार सालो से रोहिणी कोर्ट के बहार अपनी दूकान चला रहा था, जब उसने दूकान शुरू की थी उस वक्त वह खाली ज़मीन थी मगर आज विशालकाय ईमारत में अदालत चल रही है।
एक दफे ऐसा हुआ के हम दोस्त वहा कई दिनों तक नही गए, फ़िर एक दिन मेरा वह से गुज़रना हुआ तो मुझे देख कर वो बड़ा खुश हुआ और पूछने लगा के अब हम वह क्यों नही आते, उसे हमे सामान बेचने से ज़्यादा हमारी शरारत भरी बातों में मज़ा आता था।
वो बड़ा शरीफ और खुशदिल इंसान था, हम उसकी दूकान को अपनी समझते और कुछ भी उठा लेते वो बुरा नही मानता था, उसे हम पर पूरा विश्वास था। उसने कई बार हमे उधार में सामान भी दिया था।
पिछले दिनों किसी ने उसकी हत्या कर दी जब वो रात को घर जा रहा था।
जब हमे उसकी मौत की ख़बर मिली तो हम उसकी बंद दूकान पर गए और कुछ देर वहा खामोशी से बैठे रहे,
हमारा वो प्यारा दोस्त....हमारी बातों में रस लेने वाला वो चौरसिया खो गया...............
वो करीब पच्चीस साल का लड़का था जो बिहार से दिल्ली आया था और पिछले चार सालो से रोहिणी कोर्ट के बहार अपनी दूकान चला रहा था, जब उसने दूकान शुरू की थी उस वक्त वह खाली ज़मीन थी मगर आज विशालकाय ईमारत में अदालत चल रही है।
एक दफे ऐसा हुआ के हम दोस्त वहा कई दिनों तक नही गए, फ़िर एक दिन मेरा वह से गुज़रना हुआ तो मुझे देख कर वो बड़ा खुश हुआ और पूछने लगा के अब हम वह क्यों नही आते, उसे हमे सामान बेचने से ज़्यादा हमारी शरारत भरी बातों में मज़ा आता था।
वो बड़ा शरीफ और खुशदिल इंसान था, हम उसकी दूकान को अपनी समझते और कुछ भी उठा लेते वो बुरा नही मानता था, उसे हम पर पूरा विश्वास था। उसने कई बार हमे उधार में सामान भी दिया था।
पिछले दिनों किसी ने उसकी हत्या कर दी जब वो रात को घर जा रहा था।
जब हमे उसकी मौत की ख़बर मिली तो हम उसकी बंद दूकान पर गए और कुछ देर वहा खामोशी से बैठे रहे,
हमारा वो प्यारा दोस्त....हमारी बातों में रस लेने वाला वो चौरसिया खो गया...............
कुरिएर वाला
उसका नाम है जतिन धींगरा वो हमारे कार्यालय से कोरिएर ले जाता था, जब कभी उसे आने में देर हो जाती तो हम कहते कोरिएर वाला आया नही।
पिछले दिनों मालूम हुआ उसकी मृत्यु हो गई है,
वो कोरिएर वाला करीब तीस साल का सुंदर,महत्वाकांक्षी, शरीफ और घर परिवार वाला लड़का था। हम कहते के ये शख्स ज़रूर बहुत आगे जाएगा, ये सिर्फ़ कोरिएर का काम करने के लिए नही पैदा हुआ है,
और एक दिन इसने ऐसा किया भी, जतिन ने बिजनेस गुरु नाम से छोटा अखबार शुरू कर दिया था। और रात दिन उसे आगे ले जाने की बात करता था, कोरिएर का काम भी वो साथ में कर रहा था।
फ़िर अचानक उसकी मृत्यु की ख़बर आ गई,
हम कहते थे कोरिएर वाला नही आया,........................... अब कोरिएर वाला कभी नही आएगा..............
पिछले दिनों मालूम हुआ उसकी मृत्यु हो गई है,
वो कोरिएर वाला करीब तीस साल का सुंदर,महत्वाकांक्षी, शरीफ और घर परिवार वाला लड़का था। हम कहते के ये शख्स ज़रूर बहुत आगे जाएगा, ये सिर्फ़ कोरिएर का काम करने के लिए नही पैदा हुआ है,
और एक दिन इसने ऐसा किया भी, जतिन ने बिजनेस गुरु नाम से छोटा अखबार शुरू कर दिया था। और रात दिन उसे आगे ले जाने की बात करता था, कोरिएर का काम भी वो साथ में कर रहा था।
फ़िर अचानक उसकी मृत्यु की ख़बर आ गई,
हम कहते थे कोरिएर वाला नही आया,........................... अब कोरिएर वाला कभी नही आएगा..............
Friday, 20 June 2008
माँ की मुस्कान
आज मै और मेरा दोस्त अंकित साहिबाबाद से दिल्ली आ रहे थे, हम दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन से मेट्रो ट्रेन में सवार हुए, भीड़ ज़्यादा तो नही थी मगर हमे बैठने के लिए कोई सीट नही मिली हम एक कोने में खड़े हो गए।
तभी एक छोटी बच्ची अपनी माँ के साथ मेट्रो की तरफ़ बढ़ी मगर उसकी माँ के अन्दर आने से पहले ही दरवाज़ा बंद हो गया और बच्ची अकेली ही मेट्रो में रह गई, सबने शोर मचाया दरवाज़ा खोलने की कोशिश भी की मगर ट्रेन चल पड़ी।
बच्ची घबरा गई, इक सज्जन ने अपने मोबाइल फ़ोन से उसकी माँ को फ़ोन करना चाहा मगर बच्ची को नम्बर पूरा याद नही था, लोग बाग़ आदतन बातें बनने लगे मगर वास्तव में किया क्या जाए इस तरफ़ किसी का ध्यान नही था,
इतने में अगला स्टेशन झिलमिल आ गया, मैंने अपने दोस्त से कहा के चलो हम बच्ची को लेकर यहाँ उतर जाते हैं,
तभी ट्रेन का चालक भी बहार आ गया, शायद उसे वायरलेस पर सूचना मिल गई थी, हम से बात करके वो ट्रेन लेकर आगे बढ़ गया,
इतने में झिलमिल स्टेशन पर तैनात इक अधिकारी भी वहा आगया उसे भी सूचना मिल चुकी थी,
बच्ची घबरा रही थी अंकित ने उसे कई तरह से बहलाया भी वो इक पल को मुस्कुराती मगर दूसरे पल को रोने में आ जाती मगर रोई नही,
हम उससे तरह तरह से बातों में लगा कर उसका ध्यान बँटाये रखने का प्रयास करते रहे,
जल्दी ही दूसरी ट्रेन भी गई, उसकी माँ बेताबी से बंद दरवाजे से बहार देख रही थी, दरवाज़ा खुलते ही हम बच्ची को लेकर अन्दर चले आए अपनी बच्ची को देखकर माँ ने जो रहत की सांस ली उसकी कोमल भावनाए उसके चेहरे से साफ़ नज़र आती थी, बच्ची भी अपनी माँ की गोद्द में जाकर राहत महसूस कर रही थी, माँ ने हमे धन्यवाद दिया।
इस ट्रेन में काफी जगह खाली थी हमे आराम से बैठने का स्थान मिला, वरना आगे की यात्रा खड़े रहकर ही तय करनी पड़ती,
जिस वक्त माँ ने अपनी बच्ची को देखा और बच्ची ने अपनी माँ को उनके चेहरे पर आए भाव अद्भुत थे,
माँ की वो मुस्कान मेरे जेहन में अभी तक ताज़ा है उस मासूम बच्ची की वो राहत मै अभी भी महसूस कर रहा हूँ।
याद आ रहा है....................
"घास पर खेलता है इक बच्चा
पास माँ बैठी मुस्कुराती है
मुझ को हैरत है जाने क्यूँ दुनिया
काबा और सोमनाथ जाती है."
तभी एक छोटी बच्ची अपनी माँ के साथ मेट्रो की तरफ़ बढ़ी मगर उसकी माँ के अन्दर आने से पहले ही दरवाज़ा बंद हो गया और बच्ची अकेली ही मेट्रो में रह गई, सबने शोर मचाया दरवाज़ा खोलने की कोशिश भी की मगर ट्रेन चल पड़ी।
बच्ची घबरा गई, इक सज्जन ने अपने मोबाइल फ़ोन से उसकी माँ को फ़ोन करना चाहा मगर बच्ची को नम्बर पूरा याद नही था, लोग बाग़ आदतन बातें बनने लगे मगर वास्तव में किया क्या जाए इस तरफ़ किसी का ध्यान नही था,
इतने में अगला स्टेशन झिलमिल आ गया, मैंने अपने दोस्त से कहा के चलो हम बच्ची को लेकर यहाँ उतर जाते हैं,
तभी ट्रेन का चालक भी बहार आ गया, शायद उसे वायरलेस पर सूचना मिल गई थी, हम से बात करके वो ट्रेन लेकर आगे बढ़ गया,
इतने में झिलमिल स्टेशन पर तैनात इक अधिकारी भी वहा आगया उसे भी सूचना मिल चुकी थी,
बच्ची घबरा रही थी अंकित ने उसे कई तरह से बहलाया भी वो इक पल को मुस्कुराती मगर दूसरे पल को रोने में आ जाती मगर रोई नही,
हम उससे तरह तरह से बातों में लगा कर उसका ध्यान बँटाये रखने का प्रयास करते रहे,
जल्दी ही दूसरी ट्रेन भी गई, उसकी माँ बेताबी से बंद दरवाजे से बहार देख रही थी, दरवाज़ा खुलते ही हम बच्ची को लेकर अन्दर चले आए अपनी बच्ची को देखकर माँ ने जो रहत की सांस ली उसकी कोमल भावनाए उसके चेहरे से साफ़ नज़र आती थी, बच्ची भी अपनी माँ की गोद्द में जाकर राहत महसूस कर रही थी, माँ ने हमे धन्यवाद दिया।
इस ट्रेन में काफी जगह खाली थी हमे आराम से बैठने का स्थान मिला, वरना आगे की यात्रा खड़े रहकर ही तय करनी पड़ती,
जिस वक्त माँ ने अपनी बच्ची को देखा और बच्ची ने अपनी माँ को उनके चेहरे पर आए भाव अद्भुत थे,
माँ की वो मुस्कान मेरे जेहन में अभी तक ताज़ा है उस मासूम बच्ची की वो राहत मै अभी भी महसूस कर रहा हूँ।
याद आ रहा है....................
"घास पर खेलता है इक बच्चा
पास माँ बैठी मुस्कुराती है
मुझ को हैरत है जाने क्यूँ दुनिया
काबा और सोमनाथ जाती है."
Wednesday, 18 June 2008
प्यार से बेहतर कुछ नही.
प्यार का इज़हार करने से ज़्यादा अच्छा है प्यार का एहसास कराना,
प्यार का एहसास कराने से ज़्यादा बेहतर है प्यार करना,
और प्यार करने से ज़्यादा खूबसूरत है प्यार निभाना.....................
प्यार का एहसास कराने से ज़्यादा बेहतर है प्यार करना,
और प्यार करने से ज़्यादा खूबसूरत है प्यार निभाना.....................
Monday, 26 May 2008
Listen your Heart
You are alone and unique. you never were before, you never will be again.
you are beautifull and Intelligent, Accept it.
And whatsoever happens, allow it to happen and pass through it.
People say that you are going the wrong way, when it's simply a way of your own.............
(OSHO)
you are beautifull and Intelligent, Accept it.
And whatsoever happens, allow it to happen and pass through it.
People say that you are going the wrong way, when it's simply a way of your own.............
(OSHO)
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