Saturday, 15 May 2021

Pseudo Nationalism

HIROO ONEDA
(हीरू ओनेडा)
इस शख्स को 1944 में second world war के वक्त Japnese Imperial Army में बतौर सेकेण्ड लेफ्टिनेंट पोस्टिंग मिली थी।।
उस वक़्त जापान में राजशाही और फासिस्ट किस्म का सिस्टम राज कर रहा था। उस समय जापानियों को देशभक्ति की जबरदस्त घुट्टी पिलाई जाती थी जिसकी वजह से हर जापानी मरने मारने पर उतारू रहता था।।

हीरू ओनेडा और उसकी टुकड़ी को फिलिपिन्स के एक द्वीप पर अमेरिकन हवाई अड्डे पर कब्ज़े का काम सौपा गया था। मिशन पर निकले इस सैन्य टुकड़ी पर अमेरिकन फौजे भारी पड़ी और ये सैन्य टुकड़ी मारी गई। इनमें केवल चार लोग बचे थे। हीरू ओनेडा और उसके तीन अन्य साथी। हीरू और उसके साथी एक पहाड़ी गुफा में छुप गए। मिशन असफल था मगर वह इस हार को बर्दाश्त नही कर पा रहे थे। वो अपने मिशन को आज नही कल सफल करना चाहते थे। परमाणु हमले के बाद जापान समर्पण कर चुका था। हीरू ओनेडा और उसके तीन अन्य साथियों युइची अकत्सू, शिमाडा और कोज़ुका को ये बात पता ही नही थी कि जापान ने सरेंडर कर दिया है।

एक दिन हवाई जहाज़ से पूरे इलाके में पर्चे गिराए गए जिनमे युद्ध में जापानियों के सरेंडर की जानकारी के साथ इस द्वीप पर मौजूद सभी सैनिकों को सरेंडर करने को कहा गया था मगर हीरू ने इसे फर्ज़ी माना क्योंकि वो मानता था कि जापान कभी हार ही नहीं सकता लेकिन उसके एक साथी युइची अकत्सू ने पर्चे की बात को सही माना और इन्हें छोड़ कर सरेंडर करने चला गया।।

 कुछ समय बाद तलहटी में किसानो ने खेती शुरू कर दी। खेती होते देख हीरू और उसके दो अन्य साथियों शिमाडा और कोज़ुका में गहन मंत्रणा हुई। निश्चिंत हुआ कि ये किसान नही बल्कि अमेरिकन जासूस है जो भेष बदलकर उनकी टोह लेने आये है। इसलिए सैनिक नियमो के तहत तय पाया गया कि इन जासूसों (किसानो) को मारना और बर्बाद करना है। इसके बाद हीरू और उसके दो साथी शिमाडा और कोज़ुका उन किसानो को मारते, उन्हें लूटते और खुद के खाने के जितना अनाज लेकर बाकी की पूरी फसल जला देते।

ऐसी ही एक कार्यवाही में उनका एक साथी शिमाडा 1954 में मारा गया। अब बस दो बचे थे। एक हीरू और कोज़ुका। ये कार्यवाही उन दोनों ने जारी रखी और लगातार चलती रही। इस दौरान उन्होंने कई किसानो को अमेरिकन जासूस समझ कर मार डाला। इन्हीं हमलों में एक दिन तीसरा साथी कोज़ुका भी मारा गया। अब बचा केवल अकेला हीरू ओनेडा जो पहाड़ी के आसपास दिखने वाले किसी भी व्यक्ति को मार डालता।

हीरू को एक दिन एक जापानी पर्यटक युवक नोरिओ सुजुकी मिल गया जो वहाँ घूमने आया था। हीरू ने नोरिओ सुजुकी को बंधक बना लिया। नोरिओ सुजुकी ने हीरू को बताया कि युद्ध तो कई साल पहले ख़त्म हो चुका। उसने पूरी घटना बताई की कैसे एटम बम गिरे। कैसे दो शहर तबाह हुवे और कैसे जापान ने हार मान कर सरेंडर किया।

मगर नोरिओ सुजुकी की बातो पर भी हीरू को यकीन नहीं हुआ। जापानी होने के नाते उसने नोरिओ सुजुकी को छोड़ तो दिया, मगर ये मानने को तैयार नहीं हुआ कि जापान सरेंडर कर सकता है। यहाँ से हीरू को मेन स्ट्रीमलाइन में लाने का श्रेय बंधक बनाये गए नोरिओ सुजुकी को जाता है। वह जापान वापस जाकर हीरू के कमांडिग अफसर  तानिगुची की तलाश करके उनको पूरी बाते बताई। इसके बाद उस कमांडिंग अफसर तानिगुची को फिलीपींस भेजा जाता है। हीरू के पहाड़ पर कमांडिंग अफसर तानिगुची अकेले गया। उसे शाबासी दी और कहाकि युद्ध खत्म हो गया है। सरेंडर कर दो।

सन 1974 शुरू हो चूका था। 30 साल हीरू वह जंग लड़ चूका था जो तीन दशक पहले ही खत्म हो चुकी थी। इसके बाद हीरू के सरेंडर की कार्यवाही शुरू होती है। फटी हुई वर्दी पहने हीरू ने, अपनी गन,  कारतूस और समुराई तलवार, हैण्ड ग्रेनेड के साथ एक कटार को फिलीपींस के राष्ट्रपति के समक्ष समर्पण किया। उस पर 30 से ज्यादा हत्या के केस थे। मगर सरेंडर पालिसी के तहर उसको पार्डन (माफी) मिलना था और मिला भी। माफ़ी मिल जाने के बाद हीरू अपने देश 1984 लौटा। मगर हीरू ओनाडा को अपना खुद का देश ही पहचान में नही आ रहा था। उसके साथी उसको पहचान नही पा रहे थे। वो उस कल्पना में जी रहा था जो 30 साल से अधिक समय यानी 1944 में फ्रीज थी। उसकी चेतना अब चार दशक बाद बाहर आने में असहज महसूस कर रही थी।

आपको हीरू ओनाडा और उसके साथियों का किस्सा काफी अजीब लग रहा होगा। एक जीवन ख्याली युद्ध मे बर्बाद हो चूका था। इसके अलावा बेकसूरों की जो 30 से अधिक हत्या उसने की, उसे भी जोड़िये।

हिंदुस्तान में अपने आसपास और सोशल मीडिया पर देखे। हज़ारों-लाखो हीरू ओनाडा मिलेगे जो अपने समय काल से पीछे एक खयाली युद्ध लड़ रहे है।
उनको गौर से देखे उनकी उम्र 20-30-50 साल है, मगर कोई 80 साल पहले जिन्ना से, कोई 400 साल पीछे औरंगजेब से, तो कोई 600 साल पीछे बाबर से, कोई 1000 साल पीछे गजनवी से, कोई 1400 साल पीछे कासिम से लोहा ले रहा है। खंदक खोद रहा है, हमले कर रहा है।

दिमाग मे एक अजीब खयाली युद्ध चल रहा है। किसी को महात्मा गाँधी से जवाब चाहिए तो किसी को नेहरू से जवाब चाहिये। कुछ तो बाबर को ताल पीट कर ललकार रहे है। क्रांति लाना चाहते है। भीड़ में तब्दील होकर एक ऐसा युद्ध लड़ रहे है जिसमे युद्ध तो ओनाडा जैसा खयाली है मगर मौतें असली है, जिंदगियों की बर्बादिया असली है, देश का गर्त में जाना असली है।

धर्म, जाति और इतिहास से एक प्रकार के कम्प्लेक्स, और नफरत का शिकार होकर आम हिंदुस्तानी, हीरू बने फिर रहे हैं। शायद जब हीरू के तरह सरेंडर करेगे तो आँखे खुलेगी। कोई सुजुकी आकर हमारी आँखे खोलेगा तो हमको अपना ही देश पहचान में नहीं आएगा।

Crisis of Identity

इफियालिट्स !! ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ है बुरा सपना ….

यूनानी मिथकीय कथाओं में एफियालिट्स नाम के चरित्र का उल्लेख मिलता है!
(300 नामक फ़िल्म जिन्होंने देखी है वो जानते होंगे)

यूनान का राजा लियोनैइड्स बहुत बहादुरी से लड़ने के बाद भी पर्शियन राजा जर्क्सीज से हार जाता है, क्यूंकि एफियालिट्स पर्शियन राजा से जा मिलता है।।

सवाल है की एफियालिट्स पर्शिया के राजा जिसने खुद को देवता घोषित कर रखा था की बंदगी क्यूँ कबूल करता है?

एफियालिट्स एक कुबड़ा और जन्मजात अपरिपक्व शारीरिक कमजोरी वाला व्यक्ति होता है, जिसे अपने समाज में हमेशा तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।।

उसे खुद को राष्ट्रवादी सिद्ध करना होता है ताकि पहचाना जा सके समाज में, ये मौका यूनानी साम्राज्य में उसे नहीं मिलता।
तो वो पर्शियन राजा (स्वघोषित देवता) की बंदगी कबूल करके अपनी पहचान बनाने की चेष्टा करता है। 

अपनी मौत से ऐन पहले वो ये स्वीकार करता है की पर्शिया में उसे धन और औरत का सुख मिला और सबसे ज्यादा जरुरी चीज़ जो मिली वो थी 'पहचान' जो यूनान में उसे कभी नहीं मिली। 

मैंने काफी अध्ययन किया और देखा की देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भी एफियालिट्स की तरह ही हैं।
ये लोग अपने निजी जीवन में उपेक्षित थे, कुंठित थे क्योंकि ये जो होना चाहते थे वो हो नहीं सके कुछ अपनी अक्षमताओं के कारण और कुछ अवसर ना मिलने के कारण, ये लोग भी एक प्रकार से पहचान के संकट से भरा जीवन जी रहे थे जिसे अंग्रेजी में "Crisis of Identity" बोलते हैं।

इनकी इसी कमजोरी को पकड़ कर एक शातिर गिरोह ने 'राष्ट्रवादी' और 'सच्चे हिन्दू' टाइप के Title/ Certificate देने का काम शुरू किया जैसे अंग्रेज़ी हुकूमत 'खान बहादुर' 'राय बहादुर' की पदवी दिया करती थी अपने चाटुकारों को।।

Crisis of Identity से गुज़र रहे लोगो के लिए ये किसी संजीवनी से कम नहीं था उन्होंने इसे हाथो-हाथ लिया और ऐसे खड़ी हो गयी देश में स्वघोषित देशभक्त हिंदुओ की फौज।।

राष्ट्रवादी / सच्चा हिन्दू होने के टाइटल को संभालने के लिए मन की बात करने वालो से लेकर तड़ीपार गुंडे, योगी और साध्वी के छद्मभेषधारी लोग, दिनरात नफ़रत के बीज बोने वाले नौटंकी करने वाले पत्रकारों, फिल्मी लोग यहाँ तक कि देश के समस्त संसाधनों को लूटने पर उतारू चुनिंदा व्यापारिक घरानों तक कि तरफदारी करना आवश्यक बना दिया गया और इन बेचारों ने दिलो जान से ये काम किया और कर रहे हैं।।

राष्ट्रवाद की परिभाषा में इनकी सोच सिकुड़ कर जर्क्सिस जैसे स्वयंभू देवताओं की ग़ुलामी तक सिमट कर रह गयी,

Secularism / Liberalism / Communism जैसी अवधारणाओं को गालियाँ दी जाने लगी क्योंकि इनमें धर्म की दीवारें ढह जाती हैं इसलिए हिंदुत्व (हिन्दू धर्म नहीं) की बेहद संकीर्ण परिभाषा तले अपनी पहचान बनाने की कोशिश जारी है।।

इन सब के मूल में है 'एफियालिट्स' यानी… बुरे स्वप्न सरीखी...कुंठा, मानसिक विकलंगता और पिलपिला अहम जिसे जर्क्सिस जैसे शैतान अपने साम्राज्यवाद के सपनों की पूर्ति के लिए पोषण देते हैं।।