Tuesday, 3 December 2019

अब थकने लगा हूँ

मौसम की तब्दीली झिलती नही
हल्की सर्दी तबियत नासाज़ कर जाती है
दवा की गोलियां खाने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ

शबभर की महफ़िलें रास नही आती
घर का बिस्तर ही सुहाता है
मयकशी से किनारा करने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ


साया भी एक ज़माने से ख़फा है
वस्ल की ख्वाहिश नहीं होती
आवारा मोहब्बत को भुलाने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ


कौम के हर मसले से थी वाबस्तगी
गिर्द-ओ-पेश पे रहवे थी नज़र
सियासी मुबाहिसों से बचने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ

मौत का दिन तो मुकर्रर है
बस बिस्तर में वफ़ात ना हो
बिखरती सेहत से डरने लगा हूँ
मैं भी अब थकने लगा हूँ
शायद बूढ़ा होने लगा हूँ

~आवारा~