निकट संबंधों में जहाँ झूठ बोलने के पश्चात ग्लानि का अनुभव होता है;
वहीँ बात को जड़-मूल से ही छिपा लेने में अपराधबोध उत्पन्न नहीं होता।
व्यक्तिगत संबंधों में किसी बात को गुप्त रखना असत्य का ही एक विकृत रूप है।।
और यह प्रारम्भ है संबंधो के माधुर्य के समापन का।।
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