हमारे मुल्क की अदालतों में आज भी ये परम्परा चली आ रही है
की जब भी किसी मामले में कोई व्यक्ति गवाही देता है
तो उसकी गवाही शुरू करने से पहले उस से कहा जाता है
की कहो "जो कुछ भी कहूँगा धरम से सच कहूँगा "
और वह व्यक्ति चाहे हिन्दू हो या मुसलमान; चाहे वो गवाही सच्ची देने आया हो या फिर झूटी
ये कहते हुए उसकी जुबां जरूर लडखडाती है,
या फिर वो शख्स इस पंक्ति को इतनी दबी हुई जुबां से कहता है की मानो इसे कहना ही न चाहता हो.
बेशक बयान देने से पहले, या ब्यान देने के दौरान, या ब्यान देने के बाद में अमुक व्यक्ति की आवाज़ खूब बुलंद रहती हो मगर शपथ लेते हुए सब की हालत खस्ता होती देखि जाती है,
ऊपर से भले हे आत्मविश्वास से कहे मगर व्यक्ति शपथ के वक़्त जुबान दबा लेता है।
इससे ये बात तो होती है के आज भी इंसान के दिल में खुदा का खौफ कायम रहता है भले हे वो लाख गलत काम कर ले।
ये परंपरा अंग्रेजो ने शुरू की थी और उनके वक़्त में तो हिन्दुओ को गीता पर और मुसलमानों को कुरआन पर हाथ रखवा कर कसम दिलाई जाती थी।
अंग्रेजो ने इंसान की इस फितरत को बखूबी पहचान लिया था और इसीलिए अदालतों में यह परंपरा की नीव उन्होंने रखी होगी।।
हालांकि लोगो को मैंने शपथ लेने के बाद भी झूट बोलते देखा है.
यहाँ तक की मैंने खुद वकील होने के नाते अपना काम निकलने की नीयत से झूटी गवाहियां दिलवाई है, और मेरे सिखाये हुए उन झूठे गवाहों ने अपना काम बखूबी अंजाम भी दिया ,
मगर वो लोग भी धरम की कसम लेते हुए हिचकते और बचते देखे गए।
एक बात और साफ़ होती है की जब तक इंसान खुदा का खौफ खाता रहेगा जमीन से क़यामत दूर हे रहेगी।