मै ख़ुद को प्रगतिशील, आधुनिक और खुले विचारों वाला व्यक्ति मानता था।
मै जब कभी उन् लोगो या घटनाओ का ज़िक्र अख़बारों में पढता जो अपने ही परिवार के बच्चों की हत्या महज़ इसलिए कर देते है क्यूँकी उन्होंने प्रेम करने का अपराध किया था। तो मुझे लगता था के ये कैसे लोग हैं, किस सदी में जी रहे हैं।
खासकर बहुचर्चित नीतिश कटारा हत्याकांड के बारे में अक्सर मै सोचता के बेचारा सिर्फ़ इसलिए मार डाला गया क्यूंकि उसने भारती यादव से प्रेम किया था।
ऐसे किस्से लगभग रोजाना अखबारों में पड़ने को मिल जायेंगे जिनमे प्रेम युगल मार डाले जाते हैं।
उनका मुझ पर ये प्रभाव पड़ता के मै उन् सामन्तवादी,पिछडी, और बर्बर मानसिकता वाले लोगो को कोसता और उनके शिकार हुए प्रेमी युगल के बारे में सोचता के बेचारे प्रेमी???????????
लेकिन उस दिन की घटना ने मुझे उलझा कर रख दिया है............
उस दिन मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर जा पहुँचा जब मुझे मालूम हुआ के मेरी रिश्ते में लगने वाली बहिन का किसी के संग प्रेम प्रसंग चल रहा है।
मुझे इस कदर गुस्सा आया के अगर वो मेरे सामने होती तो मै बेशक उस्सपर हाथ उठा देता,
उधर उस लड़के के प्रति मेरे मन् में इतना ज़हर पैदा हो गया है के मुझे उसकी हत्या से भी गुरेज़ नही।
वास्तव में वो लड़का मेरा एक तरह से दोस्त ही है, और अगर उसका प्रेम प्रसंग किसी ऐसी लड़की से होता जिससे मेरा कोई रिश्ता नही होता तो बेशक मै उसका हर तरह से साथ देता लेकिन जब बात मेरे ख़ुद के घर से जुड़ी है तो मै किसी भी रियायत के मूड में नही हूँ।
अजीब बात है........ जिस बच्ची को मैंने गोद्द में खिलाया था, जो मेरे लिए बहिन होते हुए भी बेटी की तरह प्रिये है,
उसकी ये हरकत मुझे बिल्कुल नागवार गुज़र रही है, और ऐसे में उसे सज़ा दिए जाने को मै उचित समझता हूँ।
पर ..............
वो बड़ी हो चुकी है..... क़ानून बालिग़ है और अपने फैसले करने के लिए स्वतन्त्र भी............
लेकिन मुझे लगता है के उसे अपनी मर्ज़ी का साथी चुनने का कोई अधिकार नही, उसके लिए वाही ठीक होगा जो परिवार के लोग चाहेंगे।
समझ नही आता मेरी उदारवादिता मेरा साथ क्यूँ नही दे रही है,
आख़िर क्यूँ मै जो प्यार का कल तक इतना बड़ा समर्थक था आज ख़ुद सामन्तवादी सोच के साथ चल रहा हूँ, आख़िर क्यूँ अहिंसावादी होने पर भी मुझे हत्या जैसे विचारों से परहेज़ नही हो रहा है........
सचमुच मुझे कल तक विकास यादव से नफरत थी मगर आज मै ख़ुद उसीकी तरह सोच रहा हूँ, मुझे आज वो बंदा बिल्कुल गुनेहगार नही नज़र आ रहा है।
आख़िर ऐसा क्यूँ है के बात जब अपने घर पर आती है तो हमारा नजरिया बदल जाता है??????????????